मन के अन्दर घटित होता है सच्चा ज्ञान

जीवन एक रहस्य है, जीवन में एक अंजानापन है। जीवन मैं जो अपरिचित्तता है, जीवन में जो अज्ञात है। इन सबको जब हृदय में द्वार मिलनेे लगता है, हमारा जब पराम्बा से परिचय होता है, तब हमें वास्तविक सत्य की अनुभूति होती है।

जिसे अपने अज्ञान का बोध होता है उसके जीवन में ही क्रांति घटित होती है। उस क्रांति में वह जो कुछ जानता है वही वास्तविक ज्ञान है बाकी सब अज्ञान है जैसे-जैसे हमारे जीवन का बोध विकसित होता है तब हमें ज्ञात होता है, कि हम बहुत छोटे हैं, जबकि जीवन बहुत बड़ा है हमारी बुद्धि बहुत छोटी-सी है जबकि सत्य बहुत बड़ा है वह बहुत विराट है, बहुत असीम है, और अनन्त है।

प्रकृति अव्यवस्थाओं से घृणा करती है और सुव्यवस्था से बहुत प्रेम करती है। क्योंकि प्रकृति संपूर्ण रूप से सुव्यवस्थापक है। साधना का अर्थ है संपूर्णता के साथ किया गया सुव्यवस्थित कार्य जब हम सांस लेते है तब हमारे अंदर सांस एक सुव्यविस्थत तरीके से आती-जाती रहती है इसलिए उसे श्वसन तंत्र कहते हंै।

माँ के गर्भ में बच्चा सुव्यस्थित ढंग से बढ़ता रहता है, इसलिए हम उसे प्रजनन तंत्र कहते हंै प्रकृति अपना प्रत्येक कार्य सुव्यवस्थित ढंग से करती है इसलिए तंत्र विद्या प्रकृति के पास है।

सुव्यवस्थित ढंग से किया गया कार्य ही साधना है वही वास्तविक तंत्र है।

जब मन पूरी तरह साफ हो जाता है तो वह एक सुव्यवस्था बन जाता है। तब उसे कोई भ्रम नहीं रहता और वह दर्पण बन जाता है। बाहर के संसार भीतर के संसार और चेतना के संसार का और इन दोनों के बीच का संबंध बिना किसी विकार के बन जाता है। जब तुम मन के साथ बहुत घुल मिल जाते हो, तब तुम्हारे अंदर के सभी विकार चले जाते हंै। मन आग के समान है। हम आँख के द्वारा देखते हंै हमारी आँखों पर संपूर्ण संसार प्रतिबिम्बित होता है। आँखों के पास एक आयाम है वह संसार को प्रतिबिम्बित कर सकती है मन बहुत गहरी घटना है, वह सब कुछ प्रतिबिम्वित कर सकता है। वह भी बिना किसी विकार के साधारणत: तो वह विकृत ही करता है। जब तुम मन के साथ अपने भाव और धारणाएँ मिला दोगे तब वह विकृत मन हो जाएगा।

यह तुम्हारा जो आज का क्षण है उसे समझो, यह बहुत अनमोल है एक-एक क्षण का सदुपयोग करो इसे अच्छे से जी लो कल अपनी चिंता स्वयं कर लेगा तुम कल की चिंता मत करो कल अपनी फिक्र अपने आप कर लेगा इस जीवन से लाखों चीजें संभव हंै मौन से ज्यादा सृजनात्मक कुछ भी नहीं है।

अगर मैं इस क्षण प्रसन्न हूँ, तो मैं अगले क्षण कैसे अप्रसन्न हो सकती हूँ, क्योंकि क्षण से ही क्षण निकलते हंै प्रसन्नता से ही प्रसन्नता निकलती है और अप्रसन्नता से अप्रसन्नता ही निकलती है तुम्हारा समय तुम्हारे अंदर से ही निकलता है हम पण्डित से पूंछते हंै हमारा अच्छा समय कब आएगा मैं कहती हूँ, तुम्हारा अच्छा समय तुम से ही आएगा मेरा समय मुझसे ही आएगा अगर सबका समय एक जैसा होता तो इस दुखी मानव जाति के बीच सद्गुरू स्वामी श्री निखिलेश्वरानंद महाराज जी जैसा महान व्यक्ति नहंी हो सकता था। अच्छा और बुरा समय सबके जीवन में आता है तुमसे तुम्हारा सृजन है, और मुझसे मेरा सृजन है यदि यह पल सुंदर है तो आने वाला अगला पल और ज्यादा सुंदर होगा अगर तुम्हारा यह क्षण (पल) उदास है तो तुम्हारा अगला क्षण और ज्यादा उदास होगा क्योंकि यह तुम्हारा समय है।

सीखने की कुशलता और कला का नाम ही शिष्यतत्व है शिष्य के नियम अलग होते हंै साधकों के नियम अलग होते हंै पण्डितों के नियम अलग हंै इसलिए सरदार लोगों को सिख कहते हंै सिख का मतलब होता है, जो हमेशा सीखने को तत्पर है वही सिख है। जो कहता है, मुझे सब कुछ आता है, मुझे गायत्री मंत्र आता है कभी-कभी मैं किसी को गायत्री मंत्र देती हूँ, तो मेरे दो शब्द बोलने से पहले ही वह पूरा मंत्र बोल देते हंै वो बताना चाहते है हमें मंत्र आता है मुख से मंत्र लेना एक अलग बात है यह बात एक शिष्य ही समझ सकता है शिष्य का अर्थ होता है, एक गहन विनम्रता जो सबका आदर सम्मान करता है। उसे कहीं भी थोड़ा प्रकाश नजर आए वह अपना सिर झुकाने को तैयार रहता है। वह अपने हृदय को एक पात्र बना लेता है अगर हृदय को पात्र नहीं बनाया तो अनाहत जाग्रत कैसे होगा। प्रतिदिन बहुत सारे लोग मुझसे मिलने आते हंै वह जानना चाहते हंै। पर वह सीखना नहीं चाहते जानने का अर्थ होता है मुफ्त में जान लेना जबकि सीखने का मतलब होता है अपने को देना, चुकाना और झुकना यही शिष्यत्व है।