भय से अवरूद्ध होता है उन्नति का मार्ग

जहां भय है, वहां प्रेम संभव नहीं है।

‘‘भय घृणा है, ईष्र्या है, हिंसा है जबकि अभय प्रार्थना है प्रेम है पूजा है, पराम्बा है।’’

क्रांतिकारी वही है जो स्वयं के बदलता है जो वास्तव में अपने आप को बदलता है उसका दिया जल जाता है। एक जलता हुआ दिया ही बहुत सारे बुझे हुए दियों (दीपक) को जला सकता है तभी प्रकाश फैलेगा और आप उस ऊँचाई पर पहुँच जाओगे जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।