राहु और केतु परिचय
समुद्र मंथन के समय जब भगवान् विष्णु मोहिनी स्वरुप धारण कर माया के द्वारा असुरों को वारुणी मदिरा पिला रहे थे एवं देवताओं को अमृत्व प्रदान कर रहे थे सिंहिका पुत्र राहु विष्णु की माया में नहीं फंसा |
समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों ने बराबर का श्रम किया, असुरों के राजा बलि ने बराबरी से अमृत बांटने की बात कही थी | वे देवताओं का भाग नहीं छीन रहे थे परन्तु विष्णु ने माया रच दी और असुरों को अमृत से विमुक्त कर दिया | राहु ही वह असुर था जो कि विष्णु की माया का भेदन कर गया था , उन्हें पहचान गया अतः देवता रूप बना देवताओं की पंक्ति में सूर्य और चन्द्रमा के नजदीक बैठ गया | राहु की माया में तो विष्णु भी आ गये एवं वे उसे अमृतपान करा बैठे | वह तो सूर्य और चन्द्रमा ने पहचान लिया और दूसरे ही क्षण विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सिंहिका पुत्र राहु की गर्दन धड़ से अलग कर दी परन्तु तब तक देर हो चुकी थी | अखिरकार श्रीविष्णु को राहु को देवताओं में शामिल करना ही पड़ा | सिंहिका पुत्र राहु का मुख राहु कहलाया और उसका धड़ केतु कहलाया | सिंहिका को छाया के द्वारा मनुष्य को पकड़ लेने की सिद्धि थी | वह राक्षस राज रावण की सहायिका थीं अतः राहु और केतु छायाग्रह बने और इस प्रकार ग्रहणकाल में सूर्य और चन्द्रमा छाया से ग्रसित हो गये | नौ ग्रहों में राहु सम्मलित हुए, इन अति सूक्ष्मातीत ग्रहों का प्रभाव भी मनुष्य के जीवन पर उतना ही पड़ता है जितना कि स्थूल ग्रहों का |
किसी जातक की जन्मकुंडली समस्त ग्रह राहु और केतु के मध्य में आ जाते है तो काल सर्प योग की उत्पत्ति होती है | कर्म जातक संपन्न करता है परन्तु कर्म का फल उसे राहु एवं केतु नमक ग्रहों से ही प्राप्त होता है | पूर्व जन्म के कर्मों भी यही दो ग्रह कराते हैं | काल सर्प योग में नकारात्मक एवं सकारात्मक स्थितियाँ सामान रूप से होती हैं , काल सर्प योग साँप सीढ़ी के खेल के सामान है | अचानक जातक को आकस्मिक रूप से जहाँ ऊंचाई प्राप्त होती है तो वहीँ ऊंचाई शून्य पर पहुंच जाता है | राहु केतु वह ग्रह हैं जो जीरो को हीरो बन देते हैं और हीरो को जीरो भी बना देते हैं |
राहु के कई नाम हैं जैसे की जहर , दुषिधार , अमृत चोर , असुर , स्वर्भान , विद्येन्द्र, धाता, व्यतिपात , अगु, दानव इत्यादि |
नारियल, कम्बल, उड़द, काले तिल, काले चने, तेल राहु के द्रव्य माने जाते हैं | राहु अधिदेवता काल एवं प्रत्याधिदेवता सर्प हैं | राहु का जन्म भरणी नक्षत्र में हुआ है | राहु के गुण एवं अगुण शनि ग्रह के सामान होते हैं | राहु के प्रभाव से जातक उच्चतम आध्यात्मिक चिंतन एवं विचार , गणितज्ञ बनता है|