भगवान् शिव के पशुपतिनाथ अवतरण एवं उनके पाशुपतास्त्र मन्त्र साधना का रहस्य
पशुत्व का तात्पर्य है मारक क्षमता | मारक क्षमता के माध्यम से ही पशु अपने अस्तित्व का रक्षण करता है | पशु का एक मात्र ध्येय होता है अस्तित्व की रक्षा, स्वयं को बचने का जतन, स्वयं को ज्यादा से ज्यादा जीवित रकने का विधान |
ब्रह्मा के पास पशु द्रव्य के आलावा कुछ नहीं है और उन्होंने इसी पशु द्रव्य के माध्यम से समस्त सृष्टि की रचना की | पशु द्रव्य की प्रवत्ति यह होती है कि वह अपने अंदर सबकुछ आत्मसात के लेना चाहता है | इसलिए पशु निरंतर एकत्रीकरण करता रहता है ,एक जुट होता रहता है एवं इसी पशु प्रवत्ति से ही श्रेष्ठतम का उदय होता है | पशु प्रवत्ति प्रतिस्पर्धात्मक है ,जिस वन में सिहं नहीं होता वहां मृगों का विकास नहीं हो पाता| सिंह को मृगेन्द्र कहा गया है अर्थात मृगों का राजा |
मृग की समस्त गतिविधियां सिंह आधारित हैं वह 24 घंटे सिहं से बचने हेतु सतर्क रहता है ,उसके कान आंख चारों तरफ देखतें रहतें है |
मृग की उछाल ,उसकी सरपट दौड़ ,उसके माथे पर सींगों का विकास ,उसकी सूंघने की क्षमता ,उसकी एक पत्ते की खड़क को भी क्षमता का विकास सिहं के कारण ही होता है |
अतः उसका जीवन सम्पूर्ण रूप से सिहं आधारित है ,वह अपनी समस्त ऊर्जा सिहं से बचने के लिए ही एकत्रित | इस आलेख के अंदर ही पशुत्व का रहस्य छिपा हुआ है
एवं यही कहानी समस्त मनुष्यों की है भी मृग के सामान अपनी बुद्धि ,अपने ज्ञान विज्ञानं ,अपने तर्क ,अपने चिंतन ,अपने शास्त्र ,अपने संगठन इत्यादि के माध्यम से जीवन के प्रत्येक तल पर अनेकों महापुरषों से बचने की कोशिश करतें रहतें है अतः पूर्ण रूपेण पशु है | पशु और मनुष्यों के बीच एक आपराधिक ,मन -गढंत रेखा खींच दी गयी है जिसका शैव सिद्धाँत से कोई लेना देना नहीं है | पाशुपत साधना के माध्यम से जातक अपनी इन्ही पशुतुल्य ग्रंथियों एवं प्रवत्तियों का निवारण करता है |
तारकासुर वध के पश्चात तीनो तारक पुत्रों ने घोर तपस्या की और तीन प्रकार के नए लोकों का निर्माण कर लिया |
तीनो तारक पुत्र शिव भक्त थे एवं उन्होंने देवताओं को स्वर्ग से निकल दिया ,उन्हें दीन -हीन बना दिया ,दर -दर भटकने के लिए मजबूर कर दिया तब ब्रम्हा ,विष्णु सहित समस्त देवता शिव जी की शरण में पहुंचे और उनसे तारक पुत्रों रुपी महापशुओं के वध के लिए निवेदन किया | शिव जी कहा वे मेरे भक्त हैं अतः मैं उनका वध कैसे कर सकता हूँ ,विष्णु जी क्यों नहीं वध करते ?विष्णुजी के पास पाशुपतास्त्र तो था नहीं अतः वे मौन हो गए | शिव जी कहा आप सब मुझे सम्राट कह रहें है ,मेरी स्तुति कर रहें है परन्तु आप अगर चाहते हैं कि मैं तारक पुत्रों का वध करूँ तो सर्वप्रथम उन्हें शिव धर्म से विमुख कीजिये | विष्णु ने माया चलायी और तारक पुत्र शिव -धर्म से विमुख हो ऐश्वर्य में डूब गए | शिव-धर्म से विमुख होने का तात्पर्य है सत्य से मुख मोड़कर अपने तथाकथित सिद्धांत के अनुसार जीवन जीना बस यहीं पर तारक पुत्रों का पाशुपत विधान भंग हो गया | आज सम्पूर्ण विश्व में इतना घोर अंधकार क्यों है ? इतनी उठापटक क्यों है ? इतना विष क्यों है ? क्योकि मनुष्य द्वारा निर्मित आप्रकृतिक संसाधन, आप्राकृतिक परिस्थितियां, प्रकृति में हस्तक्षेप, उसकी आप्राकृतिक जीवन शैली ही इन सब स्थितियों का मूल है | एक वातानुकूलित यन्त्र प्राकृतिक वातानुकूलन व्यवस्था की जगह नहीं ले सकता | प्राकृतिक अनुकूलन को बिगाड़कर आप्रकृतिक अनुकूलन को लादने से ही सब गड़बड़ हो रही है |
शिव ने देवताओं से कहा मैं वध तो कर दूंगा परन्तु इसके लिए आपको पाशुपत व्रत धारण होगा, अपने अंदर पशुत्व का आविर्भाव करना होगा क्योंकि पशुत्व के आभाव में पशु की हिंसा नहीं हो सकती | पशु को पशु ही मारेगा आखिरकार भगवान् शिव के सर्वदेवमय रथ में सब देवता ब्रह्मा, विष्णु समेत पशुभाव को धारण कर यंत्रवत हो गए तब शिवजी ने सर्वदेवमय रथ पर खड़े होकर अभिजीत नक्षत्र में अपने पाशुपतास्त्र का संधान किया और एक ही बार में तारक पुत्रों द्वारा निर्मित तीनो पुरों का भेदन कर उन्हें भस्म कर दिया | इस प्रकार भगवान् पशुपतिनाथ का उदय हुआ एवं समस्त ब्रह्माण्ड उनका पशु बना |
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