शिव साधना तत्व ज्ञान
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महाकाल के प्रांगण में बैठकर काक भुशुन्डी सशंकित, तार्किक प्रवृत्ति के साधक थे परंतु उनके गुरु महाकाल क्षेत्र में निवास करने वाले अत्यंत ही सरल हृदय महत्मा थे। वे गुरु से रोज जिद करते थे कि “प्रकट करके दिखाओ-प्रकट करके दिखाओ।” शिव को गुरु से ज्यादा महत्व दे रहे थे । अचानक एक दिन उनके गुरु शिव-शिव चिल्लाते-चिल्लाते काक भुशुण्डी के पास से निकले | काक भुशुन्डी ने गुरु की अवहेलना कर दी, गुरु के चरण स्पर्श नहीं किए और मन्त्र जपते रहे। सहृदय गुरु शिष्य की अज्ञानता को भुला बैठे परंतु तभी हुंकार के साथ साथ महाकाल प्रकट हो गये और एक लात मारी काक भुशुण्डी को, बोले तूने शिवापराध किया, गुरु का तिरस्कार किया जा काक योनि में प्रविष्ट हो जा ।
महाकाल क्षमा नही करता । मनुष्य गुप्त पाप करता है, बड़ी ही चालाकी और सफाई से पापकर्म संपन्न करता है एवं दुनिया की नजरों से बच जाता है । न्याय व्यवस्था को भी अंगूठा दिखा देता है । शक्ति सम्पन्न, सिद्ध इत्यादि स्वयं ही तथाकथित नियम गढ़ लेते हैं पाप कर्म को पुण्य में परिवर्तित कर लेते हैं । सब छले जाते है, परंतु महाकाल का दृष्टांत, महाकाल की दिव्य दृष्टी और महाकाली की शक्ति के आगे असत्य कभी नही छिपता, दण्ड भोगना ही पडता है |
महाकाल चक्र में महाकाल के साथ मृत्यु प्रदान करने वाली शक्तियां, दुर्घटना ग्रस्त करने वाली शक्तियाँ, असाध्य रोग निर्मित करने वाली शक्तियाँ, अभिशप्त करने वाली शक्तियाँ, अंग भंग करने वाली शक्तियाँ इत्यादि चलतीं है। विक्षिप्त एवं पागल बना देने वाली शक्तियाँ इत्यादि सब की सब महाकाल के प्रांगढ़ में विद्यमान हैं । जब व्यक्ति अपने गुप्त कर्मों से जघन्य पाप करता है तब महाकाल कुपित हो इन शक्तियों को आदेशित करते हैं एवं ये सब जीवों को महादण्ड प्रदान करती है इन दन्डो का ब्रह्माण्ड मे कोई तोड नहीं है । समूह के समूह नष्ट हो जाते हैं, शहर के शहर उजड़ जाते हैं । यही महाकाल की हून्कार का रहस्य है, वे दण्डेश्वर हैं तो न्यायेश्वर भी हैं । वे ही संहार कर्ता निर्मित करते हैं और वे ही संहारकर्ताओं का भी संहार करते हैं । कब क्या रच दे ? किसी को पता नही क्योंकि वे आदि पुरुष हैं ।
महाकाली प्रथम महाविद्या हैं और महाकाल प्रथम शिव हैं । बहुत से कल्प आये जीव भूल गया, बहुत से कल्प आयेंगे जीव को अभी कुछ नही मालूम परंतु महाकाल साक्षी हैं । वायवी कल्प आया, वायु मे गति करने वाले जीवों की प्रचुरता थी । जलीय कल्प मे जलीय जीवों की प्रचुरता थी, वनस्पति कल्प आया केवल वनस्पतियाँ ही वनस्पतियाँ थीं अग्नि कल्प आया तो केवल अग्नि ही अग्नि थी । आये और चले गये परंतु महाकाल स्थिर रहे, चिर स्थिर रहेंगे । प्रत्येक जीव के अंदर जैविक काल रचना है । प्रत्येक कल्प के अंदर काल रचना महाकाल ने निर्मित कर दी है । कब उठेगा ? कब मरेगा ? कब नचेगा ? सब कुछ महाकाल ने पूर्व निर्धारित कर दिया है । कब किसको बिखरना है, किसको कब जुड़ना है, कब काल को बढ़ाना है, कब काल को घटाना है और कब किसको किसका काल बन जाना है यह सब कुछ महाकाल की संहिता मे पूर्व निर्धारित है । महाकाल की संहिता से ही समस्त ब्रम्हाण्ड का निर्धारण होता है ।
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