दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन विवेचना

जब तक उद्धार करने की क्षमता न हो तब तक आपका आध्यात्मिक व्यक्तित्व अध्यात्म के क्षेत्र में प्रमाणित नहीं होता | विष्णु क्या है ? लक्ष्मी क्या है ? इन दोनों का संयोजन क्या है ? विष्णु की उत्पत्ति क्या है ? इनका एक मात्र हेतु या कारण है उद्धारक चिंतन , उद्धारक क्रिया , उद्धारक शक्ति आदि गुरु शंकराचार्य जी ने जब शरीर धारण किया तो उन्होंने नाना प्रकार के पंथों का उद्धार किया , शिष्यों का उद्धार किया , श्री विद्या का उद्धार किया , जिस स्थान पे गए उसका उद्धार किया | राम जिससे मिले उसका उद्धार हुआ चाहे वह केवट या शबरी हो | कृष्ण ने कंस , अर्जुन , द्रोपदी का उद्धार किया , समस्त मानव जाति, सोलह हजार रानियों का उद्धार किया |

विष्णु हमेशा उद्धारक होते हैं ,विष्णु हमेश कल्याणक होते हैं , लक्ष्मी तब तक विष्णु के पास रहती है जब तक विष्णु उद्धारक एवं कल्याणक होते हैं | गुरु तो साक्षात् विष्णु हैं अतः शिष्यों का उद्धार करना पड़ेगा आर्थिक उद्धार, मानसिक उद्धार , पारिवारिक उद्धार , समस्याओं से उद्धार, इत्यादि -इत्यादि |

यही श्रीविद्या है कि जहाँ हाथ रखो वहां उद्धार हो जाये, जहाँ चरण रखो वहां उद्धार हो जाये , तब लक्ष्मी आपके साथ सम्पूर्णता के साथ चलेगी | जहाँ देखो, जहाँ श्वास लो, जहाँ बैठो, जहाँ शयन करो , जहाँ रहो , जहाँ बोलो अर्थात जहाँ भी जिस प्रकार से आपकी मौजूदगी हो वहाँ पर उद्धार और कल्याण सूक्ष्मातीत स्तर से लेकर जड़-चेतन-अचेतन एवं मनुष्य के स्तर तक होना चाहिए |

मै पूजन को आध्यात्म में सर्वोच्च स्थान देता हूँ | सीधे पूजन कीजिये और पूजन के देवता से अपना तारतम्य स्थापित कीजिये, मित्रता कीजिये , विश्वासपात्र बनिए,उनकी प्रसन्नता, कृपा , दया का पात्र बनिए तभी महापरिवर्तन संभव है इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है |