भगवान शरभ एवं साधना का महत्त्व
शरभ की साधना अत्यंत बिरली साधना है | शरभ को ही आकाश भैरव कहते हैं | इनके अवतार की कथा निम्न प्रकार की है –
भगवान विष्णु के अवतारों में हिरण्यकश्यप के वध और भक्तवर प्रह्लाद की रक्षा के लिए श्री नृसिंह का अनूठा अवतार हुआ | अपने भक्त प्रह्लाद के कथन – ‘मेरे प्रभु सर्वत्र व्याप्त हैं’ को सिद्ध करने के लिए विष्णु नृसिंह रूप में सभा में स्थित खम्बे से प्रकट हुए | इनका शिर सिंह का और धड़ मनुष्य का था | इसलिए इनका नाम नरसिंह पड़ा | इस प्रकार के अपूर्व अवतार लेने और परम पराक्रमी राक्षसराज हिरण्यकश्यप का नाश करने के कारण विष्णु में अहभव प्रबल हो उठा | साथ ही क्रोध का आवेग भी पराकाष्ठा पर पहुँच गया था |
अनेक प्रकार की स्तुतियाँ हो रही थीं | सभी देवगण चिंतित थे | इनके क्रोध का शमन कैसे होगा ? अन्ततः श्री शिव ने इसका समाधान सोच लिया | उसी समय एक विचित्र पक्षी का रूप धारण किया | अपने पंजों में श्री नृसिंह को उठाकर उड़ गए | आकाश में उड़ते हुए इन्होंने इतना भीषण चक्कर लगाया कि सारा ब्रह्माण्ड प्रलयकाल के समान कम्पित होने लगा | नृसिंह अपने क्रोध को भूलकर स्वयं आश्चर्य में पड़ गये | सोचने लगे यह क्या हुआ और कैसे हुआ ? कुछ समय बाद पक्षीराज ने उन्हें पृथ्वी पर सभी देवताओं के सामने लाकर छोड़ दिया | भगवान नृसिंह का क्रोध शांत हो गया |
इस अप्रत्याशित घटना से वातावरण बदल गया | तभी देवताओं ने शरभ को देखा | चंद्र , सूर्य और अग्नि उनके तीन नेत्र थे | वज्र के सामान नख थे | उनकी जीभ अत्यंत उग्र और चंचल थी | उनके दोनों पंख काली और दुर्गा से युक्त थे | हृदय और उदर में प्रलयकाल की अग्नि व्याप्त थी | दोनों जंघाओं पर व्याधि और मृत्यु बैठे थे | उनके उड़ने की गति प्रचंड वायु के वेग के समान थी | ऐसे सर्वशत्रुओं के संहारक श्रेष्ठ शरभ पक्षीराज को शरभ सालुव और पक्षीराज कहते हैं | तंत्र शास्त्रों में इनके स्वरुप का वर्णन करते हुए इन्हे श्मशान, प्रलय कालाग्नि रूप, नील भैरव, उग्र भैरव और महाभैरव कहा गया है |
इन्हें सर्वकर्मसाधक और शत्रु दर्प शमन के लिए पूज्य बताया गया है |
कनक जठरोगोद्यत रक्तपानोन्मदेन
प्रधित निखित पीड़ा नरसींहेन जाता |
शरभवा शिवेश त्राहिनः सर्वपापा
दनिशमिह कृपाब्धे सालुवेश प्रभोत्वम् ||
इस ‘आकाश भैरव कल्प’ तंत्र में कहा गया है कि भगवान भैरव ने लोक रक्षा के लिए अपने स्वरुप को यथा समय तीन रूपों में क्रमशः प्रकट किया है –
1. आकाश भैरव
2. आशुगरुड और
3. शरभ | तीसरे रूप शरभेश्वर के पुनः तीन रूप व्यक्त हुए हैं –
1. शरभ
2. सालुव
3. पक्षीराज
श्री शरभ साधना में सभी समृद्धियों के साथ सभी कार्यों में जीत होती है, वशीकरण होता है, धन लाभ होता है, मोहन होता है, क्षोभ होता है, अद्भुत आकर्षण होता है, उच्चाटन होता है, स्तम्भन होता है , निग्रह होता है , सब कुछ देखने की दृष्टि मिलती है, पति वश में होता है, स्त्री वश में होती है, देवता, मुनि वश में होते हैं, शिव विष्णु के दर्शन होते हैं, ग्रहों को देखने की शक्ति मिलती है, महेश को वश में करने की शक्ति मिलती है |
श्री शिव ने सभी प्रकार से रक्षा करने वाला, भोग तथा मोक्ष प्रदायक, सभी पापों के फलों का विनाशक, अपस्मार आदि सभी कठिन मानसिक रोगों को नष्ट करने वाला, सभी ज्वर रोग अपमृत्यु आदि नाना प्रकार के कष्टों को हरण करने वाला तथा सभी शत्रुओं का विनाशक श्री शर्भेश्वर मन्त्र का उपदेश दिया है |
भगवान शरभ भैरव परम दयालु है | वे अपने भक्तों को ही नहीं अन्य देवों के भक्तों को भी रक्षा के लिए भक्तों को दुःख देने वाले शत्रुओं का नाश करने के लिए तत्पर रहते हैं | ललिता सहस्त्रनाम की फल श्रुति में कहा है –
यत्विदं नाम साहस्त्रं सकृत पठति भक्तिमान |
तस्य ये शत्रवस्तेषां निहन्ता शर्भेश्वर ||
ऐसे अद्भुत पराक्रमी श्री शरभेश्वर की उपासना विरले ही भक्त करते हैं | तथा इनके उपासकों की इच्छाओं की पूर्ति सभी देवता पहले ही कर देते हैं |