आपके अंदर छिपा है सुख

हम एक पेड़ को देखते हैं हमे उसके पत्ते दिखाई देते हैं, उसमें लगे फूल-फल हमें दिखाई देते हैं उसकी टहनिया हमें दिखाई देती हंै, लेकिन हम उस पेड़ की जड़ को नहीं देख पाते जिस पर उस पेड़ का सारा अस्तित्व टीका हुआ है। जिसके बिना वह पेड़ हो ही नहीं सकता था। उसी प्रकार हमें इन दो आँखों से पराम्बा दिखाई नहीं देती वह भी पेड़ की जड़ के समान छुपी रहती है। पत्ते, फूल, फल की तरह हमें हमारा जीवन दिखाई देता है। हमारा जीवन पराम्बा से विकसित होता है।

हमारे जीवन में तीन तल होते हैं, शरीर, मन और आत्मा।

शरीर :-  शरीर प्रथम तल है-इसलिए हमें सबका शरीर आसानी से दिखाई देता है। बिना प्रयास के दिखाई देता है, लेकिन जो हमारे भीतर है उसे देखने के लिए हमें कुछ प्रयास करना पड़ेगा। हमारा शरीर मंदिर के बाहर का परकोटा है, इसलिए मंदिर के परकोटे की दीवारंे अगर मजबूत हैं तो भीतर मूर्ति भी आराम से रखी रहेगी बिना परकोटे (दीवार) के मूर्ति भी सुरक्षित नहीं है। इसलिए जीवन में शरीर का बड़ा महत्व है।

मन :- मन की भी थोड़ी बहुत झलकियाँ हमें मिल जाती हंै क्योंकि हमें सुख का अनुभव होता है, हमें दुख का भी अनुभव होता है, हमें क्रोध भी आता है, हमें प्रेम भी होता है। हमें भूख भी लगती है, हमें प्यास भी लगती है। यह सारी खबर हमें हमारा मन देता है, क्योंकि शरीर को तो कुछ खबर होती नहीं है। हमारे सिर में दर्द हो रहा है, हमारे पैर में काँटा लगा है, कुछ तो भीतर है जो इसकी खबर हमें देता है। कुछ लोग मंदिर के परकोटे में खड़े होते हैं कुछ लोग मंदिर के प्रांगण-दालान तक पहुँच जाते हैं, कुछ लोग मंदिर के गर्भ ग्रह तक भी पहुँच जाते हैं, जहाँ देवता की मूर्ति विराजमान है। शरीर के तल पर भी कुछ भूख-प्यास है, मन के तल पर भी है, और आत्मा के तल पर भी है।

अगर आप शरीर की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करोगे तो उसे भी कष्ट महसूस होता है। मन की भी अपनी एक भूख है, उसे भी संगीत, साहित्य, प्रेम, मित्रता की तलाश रहती है। मन की जरूरतें अगर पूरी न हों तो हमें दुख मिलता है। उसकी जरूरत पूरी कर दो तो सुख मिलता है। शरीर सुखी और दुखी नहीं होता। शरीर या तो कष्ट में रहता है या फिर वह कष्ट में नहीं रहता है। मन के सुख बड़े भागने वाले सुख हंै। यह मात्र क्षणिक सुख हैं आप कितनी देर तक संगीत सुनेगें थोड़ी देर बाद आप स्वयं ही कहेंगे बस हो गया। आप कितनी देर तक प्रेम कर सकते हैं? आप कितनी देर तक अपनी प्रेमिका का हाथ अपने हाथों में पकडक़र रख सकते हैं? थोड़ी देर बाद आप स्वयं बोर हो जाएंगे। बस बहुत हो गया, मन हमेशा नए-नए सुखों की मांग करता रहता है। जब तक वह चीज उसे नहीं मिलती वह उसके लिए तड़पता है, छटपटाता है। जब वह उसे मिल जाती है तो वह उससे भी बोर होने लगता है। एक गाना आपको कितना भी प्रिय क्यों न हो, आप उसे भी लगातार ज्यादा दिन तक नहीं सुन सकते। उससे भी आप बोर हो जाओगे। एक गाने को बार-बार सुनोगे तो आपको घबराहट महसूस होने लगेगी। किसी ने अगर लगातार बीस बार उसे बजा दिया तो आप स्वयं वहां से उठकर चले जाएगें जबकि वह गाना आपको बहुत पसंद था। अगर आपको अपने प्रेमी को एक घण्टे तक गले से लगाना पड़े, आप सोचोगे यह क्या बला है, इससे छुटकारा मिल जाए।

शरीर हमेशा पुराने की मांग करता है जबकि हमारा मन नई-नई चीजों की मांग करता है। आपका शरीर कहेगा कल एक बजे भोजन मिला था तो आज भी उसी समय भोजन मिल जाए। एक बजेगा तो शरीर को कष्ट होने लगेगा। कल मेरा जो बिस्तर था, मेरा जो तकिया था, मेरी जो रजाई थी मुझे वही चाहिए। कोई दूसरा अगर उसे ले लेगा तो तकलीफ महसूस होने लगेगी। अमेरिका जैसे देशों में लोग मन के स्तर पर जी रहे हैं, उन्हें पति पुराना पसंद नहीं, पत्नी पुरानी पसंद नहीं क्योंकि मन के स्तर पर यह सब किया है तो वह ज्यादा दिनों तक टिकने वाला नहीं है। अमेरिका में अब लोगों के पास तलाक लेने का समय भी नहीं है। आज-कल वह ट्रायल मैरिज की वकालत करते हैं। जब सब कुछ पक्का हो जाएगा तब विवाह कर लेंगे। जिन लोगों ने भी प्रायोगिक विवाह किया वह कभी पक्का विवाह करने  कि हिम्मत नहीं कर पाते। वह जिन्दगी में मरते दम तक यही सोचेगा कि कहीं आगे जाकर कुछ झंझट न हो जाए।

तीसरा तल आत्मा का है:- आत्मा की भी अपनी भूख है, उसकी अपनी प्यास है। आत्मा की भूख प्यास पराम्बा है, धर्म है, अध्यात्म है। आपके पास जीवन में सब कुछ है, रुपया-पैसा गाड़ी-बंगला इज्जत, शोहरत, नाम, पर अगर आपके पास जीवन में पराम्बा नहीं है, धर्म नहीं है, अध्यात्म नहीं है, तब आपके अंदर एक अजीब सी बैचेनी रहेगी एक अशांति होगी आपके जीवन में सब कुछ होने के बावजूद एक रेस्टलेसनेस (अस्थिरता) रहेगी। आपको हमेशा ऐसा लगेगा कुछ खोया हुआ है, कुछ गुम गया है, जिससे कभी मिले ही नहीं उसे कैसे समझ में आएगा कि क्या खोया है? उसके अंदर एक अजीब सी बैचेनी एक अंजान सी परेशानी, एक प्रकार की अशांति उसके अंदर चौबीस घण्टे बनी रहती है। खाना मिल गया, कपड़े मिल गए, मकान मिल गया, गाड़ी मिल गई, संगीत भी सुन लिया फिर भी लगेगा अभी भी ऐसा कुछ है जिसकी आवश्यकता है।

शरीर को भी सब कुछ मिल गया, मन को भी सब कुछ मिल गया, लेकिन आपके जीवन में एक एमटिनेस है जो हमेशा अंदर से आपको चोट करती रहती है। यही चोट बार-बार कहती है, यही आत्मा की भूख बार-बार कहती है, जब तक पराम्बा न मिल जाए जीवन में सब कुछ धोखा है, छल है, झूठ है। आत्मा की इस भूख को समझ लेना बहुत जरूरी है। एक अंजाना दुख पूरे जीवन भर छाया रहेगा शरीर की तृप्तियां होगी, मन को भी खूब सुख मिलेगा, फिर भी एक स्थाई स्वर, दुख, बैचेनी एक विषाद एक एनजाइटिस पीछे खड़ी रहेगी। पूरे वक्त, जिस दिन तुम्हे पराम्बा की झलक मिल जाती है उस दिन यह बैचेनी बिल्कुल समाप्त हो जाती है। तब आप एकदम निर्भय हो जाते हैं, तब फटे कपड़ों में भी आपके अंदर एक प्रकार की तृप्ति रहती है। शरीर को प्रतिदिन भोजन, पानी की आवश्यकता रहती है, सुख सुविधाओं को टाइम टू टाइम मिलना चाहिए। नहीं तो शरीर को बड़ा कष्ट हो जाएगा। आत्मा को एक बार दे दो फिर दुबारा मांग नहीं है। जो मिल गया वो सदा के लिए मिल गया। एक बार निखिल मिल गए तो मिल गए निखिल के शरीर के स्तर पर निखिलेश्वरानंद महाराज अगर हाथ छोडक़र चले भी जाएँ तो आत्मा के स्तर से निकल कर जाकर बताएँ। एक बार मिल गए तो हमेशा-हमेशा के लिए मिल गए। शरीर के तल पर कभी भी सुख नहीं मिलता उस स्तर पर या तो कष्ट होगा या कष्ट नहीं होगा। आत्मा के तल पर आनंद होता है, मन के तल पर सुख-दुख होते हंै।

कैसे उस पराम्बा की खोज की जाए? उस विज्ञान का नाम ही धर्म है। निश्चित रूप से आपका जीवन बहुत व्यस्त है, आपको अपने शरीर की, अपने मन की, अपने परिवार की आवश्यकता को पूरा करने की जिम्मेदारी है। जीवन तो आपका व्यस्त होना ही है, अगर आपको सिर्फ शरीर की जरूरतें पूरी करनी होती तो आपका जीवन इतना ज्यादा व्यस्त नहीं होता। शरीर की जरूरतेें बहुत सीमित हंै। शेर एक जानवर है, उसे भूख लगती है, वह उठता है अपना एक शिकार पकड़ता है, फिर खा-पीकर सो जाता है। उसकी जरूरत खत्म हो गई। फिर वह दिन भर व्यस्त नहीं रहेगा। पशु कभी मन के तल पर नहीं जीते इसलिए वह कभी दुखी नहीं होते। उन्हें रोज-रोज नए-नए व्यंजन की आवश्यकता नहीं रहती। वह यह भी नहीं कहते, कल जो भोजन किया था, आज भी वही मिल रहा है, क्योंकि वो शरीर के स्तर पर जीता है। जो कल खाने को मिला था रोज-रोज वही खाकर प्रसन्न होकर खालेगें। क्योंकि शरीर एक यंत्र है जैसे कार को चलाने के लिए पेट्रोल, डीजल की आवश्यकता होती हैं। कार आपसे कभी यह नहीं कहेगी कि रोज-रोज मेरे अंदर पेट्रोल डलवाते हो। आप एक कुत्ते को देखें, आप एक बिल्ली को देखें वह आपको कभी व्यस्त नहीं दिखेगे। अगर बिल्ली ध्यान करती है तो वह सिर्फ चूहे का ध्यान करती है।

किसी ने सुक्रात से पूछा आप एक संतुष्ट सुअर बनना चाहोगे या एक असंतुष्ट सुक्रात बनना चाहोगे? सुक्रांत ने कहा मैं एक संतुष्ट सुअर बनने की अपेक्षा एक असंतुष्ट सुक्रात बनना पसंद करूंगा क्योंकि एक असंतुष्ट सुक्रात ही अनेक लोकों की यात्रा कर सकता है। मनुष्य हँसता भी है, रोता भी है, प्रेम भी करता है क्योंकि उसके पास मन है। मन की दुनिया में जीना एक चिंता में जीना है ज्यादातर लोग मन की दुनिया में जीते हैं और समाप्त हो जाते हैं। विक्षिप्त भी हो जाते हैं। मनुष्य जीता है उसके अंदर उतना ही ज्यादा पागलपन आ जाता है। सारी दुनिया में सबसे ज्यादा पागल अमेरिका में हैं। वहाँ पर सबसे ज्यादा मस्तिष्क के चिकित्सक हैं। आप एक आदिवासी गाँव बस्तर में जाओ वहाँ के लोग पागल नहीं हैं। जो लोग शरीर के स्तर से मन के स्तर पर पहुँचते हैं, कुछ और खिसके कुछ थोड़ा और आगे बढ़े। जो रुक जाते हैं, यह बहुत खतरनाक है। वह न तो पशु हंै और न ही वह पराम्बा को प्राप्त होते हैं। दोनों तरफ का खिंचाव पड़ता है उनके ऊपर। आत्मा कहती है आगे बढ़ों सब ठीक हो जाएगा। शरीर कहता है वहाँ मत जाओ आदमी का यही द्वंद है, यही तनाव है। आखिर करें तो क्या करें। एक रास्ता है जो छूट गया, एक रास्ता है जो शुरू नहीं हुआ, हम बीच के पूल पर खड़े हुए हैं। यह पुल लोहे का भी नहीं है। यह हमारे मन का पुल है जो पानी से भी ज्यादा चंचल है। जो प्रकाश से भी ज्यादा गतिमान है।

आपके अंदर जो बैचेनी है, आपके अंदर जो परेशानी है, वह इसलिए है, क्योंकि आपको पराम्बा पुकार रही है। आगे बढ़ो और आगे बढ़ो ऐसी जगह आपके जीवन में आ जाए उसके आगे पीछे कुछ भी नहीं है। साधक कहते हैं हम ग्रस्त हैं। सुबह से शाम तक आफिस में रहते हैं दुकान में रहते हैं, फैक्ट्री चलाते हैं, नौकरी करते हैं, बच्चों का पालन-पोषण करते हैं। कब खोजें हम आनंद को? कैसे प्राप्त करें उस आनंद को? कब प्राप्त करंे उस आनंद को? हमारे पास समय कहा है। शाम को थके माँदे, घर लौटते हैं दूसरी ड्यूटी घर पर है, बच्चों की, धर्म- पत्नी की, एक ड्यूटी करते-करते थक जाते हैं। फिर घर आकर ओवर टाईम ड्यूटी करना पड़ती है। फिर इतना थक जाते हैं और सो जाते हैं। दूसरे दिन फिर वही क्रिया दोहराते हैं। सोचते हैं किस मार्ग से कब जाएँ समय ही नहीं है। आप सब ठीक कहते हो, इसमें गलत कुछ भी नहीं है। पराम्बा की खोज कोई प्रतियोगिता नहीं है। जो आदमी रोटी कमाने गया वह बॉसुरी बजाना नहीं सिख सकता। जो बॉसुरी बजा रहा है वह उसी वक्त रोटी नहीं कमा सकता। जो रोटी कमाते हंै, वह कविता नहीं करते, जो कविता करते हंै वह रोटी नहीं कमाते, इसलिए अधिकांश कविता करने वाले गरीब ही रहते हैं। आपने शरीर और मन की आकांक्षाएँ जानी हैं। उनके अंदर आपस में टकराव है। आपको पराम्बा की आकांक्षाओं का पता ही नहीं है। जो कभी टकराती नहीं है। आपके व्यस्त जीवन में धर्म की खोज, अध्यात्म की खोज, आपकी साधनाएँ आपके मंत्र जाप का वह कोई विरोध नहीं करती। उसके लिए आपको अलग से कोई समय नहीं निकालना। आपके व्यस्त जीवन में ही आप चाहे गिट्टी फोड़ो, मकान बनाओ, डॉक्टरी करो, फैक्ट्री चलाओ, नौकरी करो, चाहे घर में रोटी बनाओ, कपड़े सिलो, कपड़े धोओ, वीणा बजाओ, बॉसुरी बजाओ, चित्र बनाओ आप कुछ भी करो पराम्बा की खोज में कोई बाधा नहीं हैं। पराम्बा की खोज कांस्सनेस हैं एक चेतना है। एक्ट नहीं डूईंग नहीं है। जिन्दगी इतनी बड़ी चीज है जो बड़ी सहजता से हमें मिली है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में दो अरब सूरज हैं और इतनी ही पृथ्वियां हैं। उन सूरजों पर और इस छोटी-सी पृथ्वी पर अभी जीवन है। अगर जीवन न होता तो हमारा अस्तित्व भी नहीं होता। यह बहुत आश्चर्यजनक है इस पृथ्वी पर करोड़ों प्रकार की योनियाँ हैं। उन्हीं योनियों में से एक योनि मनुष्य योनि है जिसे थोड़ा-सा बोध है। यह एक बहुत बड़ी घटना है, आपके पास जीवन भी है, और चेतना भी है हम लोग कहते हैं हमें अपना जीवन बेकार लगता है। जीवन से बढक़र क्या है? इसकी हम कोई कीमत नहीं लगा सकते। अगर ये जीवन न होता तो हम किससे शिकायत करते? लेकिन हमको जीवन मिला है। इस पर हमारी, कोई नजर नहीं जाती। हम पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, पत्थर नहीं हैं। हमें मनुष्य जीवन मिला है फिर भी हम संतुष्ट नहीं हैं। हमें अगर कुछ भी मिल जाए तो वह भी हमें बेकार लगेगा, क्योंकि हमारे सोचने का मापदंड गलत है। हमें जो कुछ भी मिल जाता है, मिलने के बाद बेकार लगने लगता है। जीवन की धन्यता को अनुभव करना चाहिए, हमें उसे धन्यवाद देना चाहिए। जीवन क्या है इसे पहचानना चाहिए। सारे धर्म, सारे गुरु आनंद की बात करते हैं। आनंद किसी तिजोरी में या अलमारी में नहीं रखा जो खोल लो और निकाल लो। आपको अपने जीवन से सुख आनंद खीचना पड़ेगा। इस पृथ्वी पर बहुत कुछ है जो हमें सुख दे सकता है। पर हम सुख नहीं ले पाते। जिस चीज से हमें सुख मिलना चाहिए उसमें से भी हम दुख निकाल लेते हैं, और दुखी हो जाते हैं। हम एक सुंदर फूल को देखते हैं, एक सुन्दर चेहरा देखते हैं, उसे देखकर हम आनंदित नहीं होते,  बल्कि हम दु:खी हो जाते हैं। हम सोचते हैं यह सुन्दर फूल हमारी बगिया में क्यों नहीं है? हम सामने वाले से ज्यादा सुन्दर क्यों नहीं हैं? हम किसी सुन्दर स्त्री, बच्चे, फूूल को देखकर आनंदित नहीं होते। फूल किसी की भी बगिया का क्यों न हो तुम उसकी सुगंध ले सकते हो, आनंदित हो सकते हो। हम हर चीज से चौबीस घण्टे दु:ख इकट्ठा कर रहे हैं। हम दिन भर चिल्लाते रहते हैं हम जीवन से थक गए हैं। अगर हम जीवन से ऊब गए हैं या हम थक गए है, तो हम गलत ढंग से चल रहे हैं। अगर आपकी दु:ख इकट्ठा करने की आदत है तो फिर आनंद की मांग मत करो यह दो छोर हैं एक साथ नहीं चल सकते। हमें अपनी जिन्दगी से सुख लेना पड़ेगा। न कोई क्षुद्र है, न विराट, जो छोटी चीजों का सुख नहीं ले सकता वह विराट के सुख को कैसे उपलब्ध हो सकता है। छोटे-छोटे अणुओं से मिलकर सारी पृथ्वी बनी है। छोटी-छोटी बूंदों से मिलकर सम्पूर्ण सागर बना है। अगर तुम कहोगे हमें बूंद नहीं सागर चाहिए। जिन्दगी हमें बहुत मौके देती है, हम सभी मौके चूक जाते हंै। चौबीस घण्टे ऐसे जियो हर चीज से सुख निकालो, अगर तुम सुख खींचने में माहिर हो गए तो तुम पाओगे एक सुख की हवा तुम्हारे चारों तरफ बह रही है। जब मेरे पास आकर भी तुम दु:खी होते हो, तो मुझे बहुत हैरानी होती है। मेरे घर-परिवार के लोग मेरे सामने बैठकर दु:खी होते हैं, मुझसे शिकायत करते हैं तो मैं अचंभित हो जाती हूँ, और विश्वास भी नहीं होता कि लोग इतने दु:खी क्यों हंै।

तुम्हें क्या जरूरत है, इतना ज्यादा सोचने की? इतनी ज्यादा चिन्ता करने की, हमारे बारे में लोग क्या सोचते हैं? तुम्हें भी क्या जरूरत है दूसरों के बारे में सोचने की। जब तुम दूसरे के बारे में सोचते हो, उस पर दबाव डालते हो, हम पूरे समय मन ही मन जाल बुनते रहते हंै।

इससे जीने का रस खो जाता है। जीने के रस को प्राथमिकता दो और बाकी सब चीजों को साधन बनाओ मित्र को भी साधन बनाओ और शत्रु को भी साधन बनाओ, क्योंकि शत्रु भी जीने में रस लाता है, सभी अपने अपने धर्म को बड़ा कहते हैं।

जीसस सूली पर लटक गए क्योंकि किसी तीर्थनकर पर इतना दवाब नहीं पड़ा उनके सूली पर लटकने से इतना बड़ा वर्तुल पैदा हुआ कि आज क्रिश्चयनटी विश्व धर्म बन गई। एक आदमी मर गया उसने अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया। कुछ लोग कहते हैं, पीताम्बर पहनने से क्या होगा? रूद्राक्ष पहनने से क्या होगा? मंत्र-जाप करने से क्या होगा। तुम्हारा छोटा-सा यह कृत्य तुम्हें अध्यात्म जगत से जोड़ देगा। तुम्हारा निर्णय ही तुम्हारी घोषणा है। लोग तुम्हारी तरफ देखने लगते हंै, इससे तुम्हारे अंदर एक प्रकार का आकर्षण आ जाता है जब तुम दीक्षित हो जाते हो, एक अलग दुनिया से तुम्हारा संबंध जुड़ जाता है।

अगर तुम पीताम्बर पहनकर कल जैसी जिन्दगी जियोगे, जैसे पहले जीते थे तो तुम्हारे अंत:करण में चोट लगनी शुरू हो जाएगी। तुम्हारा यह छोटा-सा कदम तुम्हारी पिछली दुनिया से संबंध क्षीण कर देगा और एक नई आलौकिक दुनिया से तुम्हारा संबंध जुड़ जाएगा तुम्हारा एक छोटा-सा कदम तुम्हें एक नई दुनिया से जोड़ देता है।

जो साधक आनन्दित है वही पराम्बा के साथ अनुग्रहित हो सकता है। जो आनंन्दित नहीं है, वह अनुग्रहित कैसे हो सकता है? आप पीताम्बर ओढ़ते हंै, आप दीक्षित होते हैं आपको शक्तिपात किया जाता है, शक्तिपात की क्रिया गर्भाधान के समान है। उसमें कौन-सा बीज बोया है? जिस प्रकार एक स्त्री के पेट में जब बच्चा आता है तो उस स्त्री (माँ) का पूरा गुण धर्म बदल जाता है। उसी प्रकार जब कोई साधक निखिल शक्ति से शक्तिपात द्वारा दीक्षित होता है तो उसका पूरा गुण, धर्म, व्यवहार बदल जाता है। उसके आव-भाव, आचार-विचार, बोलचाल बदल जाते हंै। अनेक बदलाव उसके अंदर दिखाई देते लगते हैं। जैसे कई स्त्रियाँ गर्भ के साथ सुन्दर, विचार शील हो जाती हंै, शांत हो जाती हैं क्योंकि नौ महिने एक दूसरा जीवन उसके गर्भ में रहता है वह उसको प्रभावित करता है। यही हाल साधक का होता है उसके अंत: करण में वास्तविक धर्म का उदय होता है। उसके अंदर वास्तविक ज्ञान पैदा होता है वह मिथ्या बातों से ऊपर उठ जाता है।

ऐसा सभी निखिल शक्तिपात प्राप्त साधकों के साथ होता है। मैं उन सभी साधकों को आशीर्वाद देती हूँ, उनके अंत:करण में सब कुछ बदल जाए। आप सभी साधक पूर्णता की ओर आगे बढ़ें और सर्वोच्चता के शिखर पर पहुँचे। एक बात और मैं तुम सबसे कहना चाहती हूँ। पिछले कुछ वर्षों से मैं सभी पूजन  श्री यंत्र पर कर रही हूँ, श्री यंत्र में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्तियाँ समाहित हंै इसमें सब कुछ विराजमान है। इसमें दसो महाविद्याएँ विराजमान हैं।

यह यंत्र निखिल स्वरूप है इसलिए सभी साधकों के पास एक श्री यंत्र होना चाहिए जिस पर वह अपना पूजन सम्पन्न कर सकें और मनोवांछित फल प्राप्त कर सकें।

Next article

कृष्ण लीला