आत्म चिंतन
जो भीतर के वार्तालाप को तौड़ दें वही सुनने में सक्षम होता है, श्रवण की कला उसी को सिद्ध होती है, जिसके अंदर का वार्तालाप बंद हो गया है, अगर तुम्हारे अंदर का वार्तालाप थोड़ी देर के लिए ही बंद हो जाए तो तुम पाओगे धीरे-धीरे अनंत आकाश खुल गए हैं, तुम पाओगे अचानक एक दिन तुम्हें वह सब कुछ मिल गया है जिसकी तुमने कभी स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी जो अपरिचित था उससे अचानक तुम्हारा परिचय हो गया जो एकदम अजनबी था वह अपना हो गया है। सारी आध्यात्मिक साधनाएं मंत्र, जाप ध्यान, पूजन, मौन, सारी चेष्टाएँ सिर्फ इसलिए है कि तुम्हारे भीतर शब्दों की एक सतत् धारा बह रही है वह छिन्न-भिन्न हो जाए उसके बीच खुली जगह आ जाए।
हृदय में जब मौन की शून्यता घनी हो जाती है तो आनंद की लहरें उठने लगती हैं, आनंद की प्राप्ति कोई घटना नहीं है, बाजार में मिलने वाली कोई वस्तु नहीं है। अगर एक बार तुमने इसे पा लिया तो यह घटने वाली चीज नहीं है, यह दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली जाती है। इसके बढऩे की कोई सीमा नहीं है।
पराम्बा के संबंध में कुछ भी नहीं कहा जा सकता है, न तो उनका कोई अंत है, और न ही उनकी कोई सीमा है, वह सबसे परे हंै। ध्यान के संबंध में भी कुछ नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि असीम को हम कैसे बताएँ, पराम्बा को जाना नहीं जा सकता उन्हें सिर्फ महसूस किया जा सकता है। उन्हें जिया जा सकता है, उन्हें समझा जा सकता है। उन्हें न तो सिद्ध किया जा सकता है और न ही उन्हें असिद्ध किया जा सकता है। वह कोई व्यक्ति नहीं है वह तो एक अनुभूति हैं। एक आखरी अनुभूति, बिल्कुल आखरी अनुभूति, फिर कहने के लिए आपके पास कुछ भी नहीं बचता है।