निखिलत्व

निखिल के तराने गा रही हूँँ, तुम्हारे दिल में निखिल की आग भडक़ा रही हूँ, यह हादसादे जिन्दगी किसी तूफा में बहती जा रही हूँ, मासाहिब लोग घूरते है सब तरफ से मुझको मगर। मैं कह कहे लगा रही हूँ, न मेरी मंजिले है, न कोई राहे,  सिर्फ एक निखिल की धुन में चली जा रही हूँँ।

तुम्हें भी दीक्षा के बाद अपने मूल स्त्रोत का पता चल जाए, उसकी एक झलक मिल जाए, उनका स्वरूप दिखाई दे जाए, तुम्हारे जीवन में एक धुन आ जाएगी, एक प्रकार का संगीत आ जाएगा, तुम्हारी आँखों में एक मस्ती आ जाएगी, अगर शिष्य की आँखों में मस्ती न हो तो वह काहे का शिष्य, जिसके पास बैठकर तुम्हारे अंदर गीत प्रकट होने लगे, जिनकी खूशबू से जो फूल कभी नहीं खिले थे वो भी खिलने लगें, वही भक्त है, वही शिष्य हंै, तुम भी खोलो अपनी आँखें वह तुम्हें भी दिखाई पड़ सकते हैं।

अगर सारी शक्ति कर्म में लग जाए तो इस संसार का प्रत्येक व्यक्ति अपूर्व आनंद को उपलब्ध हो जाता उसके जीवन में अपूर्व विजय की यात्रा हो जाती फिर जीवन में सफलता ही सफलता है। पर 99 प्रतिशत ऊर्जा तो तुम्हारी फल की चिन्ता में जाती है। सिर्फ एक ऊर्जा प्रतिशत कर्म जाती है।

यह संसार पराम्बा का विस्तार है। ब्रहम और ब्रम्ह्माण्ड एक ही ऊर्जा की दो दशाएं है।  ब्रहम बीज है ब्रह्माण्ड वृक्ष  के समान है। इस दुनिया में बहुत कम लोग विलोम का विचार करते हैं। जो विलोम का विचार नहीं करते वह पूर्ण नहीं हो सकते।

सिर्फ सनातन धर्म ने ही अनुलोम और विलोम की बात कही और इस पर ध्यान दिया। इसलिए यह पूर्ण धर्म है। इसी धर्म ने सृष्टि निर्माण की बात कही है और प्रलय की बात भी कही है। पराम्बा सृष्टि को बनाती भी है तो मिटा भी देती है। सृजन हुआ तो प्रलय भी होगा। जन्म हुआ तो मृत्यु भी होगी। जो चीज फैली है तो कब तक फैलेगी गुब्बारे में कितनी हबा भरोगे। फूलता जाएगा फूलता जाएगा। फिर एक सीमा के बाद वह फूट जाएगा फिर सुकड़ जाएगा।

मूल्यवान क्या है? आदमी पहले झोपड़ी में रहता था उसने मकान बना लिया अब वह महल में रह रहा है आज गरीब से गरीब व्यक्ति भी ऐसे कपड़े पहनता है जो पहले के राजा महराजाओं को भी नसीब नहीं होते थे। आज हर घर में बिजली का पंखा है, टीबी है, जो कि पहले के राजा अकबर और सम्राट अशोक के पास भी नहीं थे पहले के समय हाथ के पंखे से हवा करनी पड़ती थी। पहले के राजाओं के पास आज जैसी आधुनिक सुख सुविधाओं के साधन नहीं थे। जो कि आज एक आम व्यक्ति के पास है। परिग्रह का विस्तार बढ़ गया है क्या परिग्रह के साथ आदमी विकसित हुआ है। क्योंकि जितना परिग्रह बड़ा उतनी चिन्ता अशांती वैचेनी बड़ती है उतनी विक्षिप्ता बढ़ती है। लोग कहते है उसकी स्टेटण्र्डेऑफ लाइफ अच्छी है जीवन स्तर अच्छा है, जीवन गुण की बात है, महावीर नग्न खड़े है बुद्ध के हाथ में भिक्षा पात्र है क्या तुम लोग सोचते हो उनका जीवन स्तर तुम से नीचा है। पर उनके पास आत्मा है, गुणवत्ता है, भगवत्ता है मैं तुम सभी शिष्यों को यही आशीर्वाद देती हूँ। तुम जीवन के सभी पक्षों को देखो तुम्हें अनुलोम विलोम आत्मा, गुणवत्ता और भगवत्ता की प्राप्ति हो और तुम्हारे पास मकान, वैभव एक अच्छी समझदारी हो, तुम्हारी सोच आँखों में गहराई हो, तुम्हारे अंदर किसी प्रकार का हल्कापन न हो.