सत्यम शिवम् सुन्दरम्

क्या कभी किसी ने गुस्से में चाँद को निकलते हुये देखा है? क्या कभी किसी  ने गुस्से में फूल को खिलते हुये देखा है? क्योंकि चाँद और फूल को खिलते हुये देखने के लिए अविरोधी चित्त चाहिए। नॉन रेसीसटेन्ट माइन्ड ऐसा मस्तिष्क ही सौन्दर्य और सत्य के दर्शन कर पाता है, ऐसा चित्त पराम्बा के परम सौन्दर्य के दर्शन कर पाता है। भगवती का चन्द्रमा के समान चेहरा तीर कमान के समान भौंहे, गुलाब के फूलों की तरह होंठ, उनकी कजरारी आँखे, सुन्दर चित्त ही सौन्दर्य के दर्शन कर पाता है। अविरोधी चित्त ही परम सौन्दर्य और सत्य के दर्शन कर पाता है।

जीवन में जैसा भी है जो भी है हम उसको समग्रता से स्वीकार करते हंै उसी दिन से आपकी जिन्दगी में सत्यम शिवम सुन्दरम की शुरूआत हो जायेगी। आपकी जिन्दगी में भराव आना शुरू हो जाएगा। शिव और सत्य एक ही है। यह स्वीकारने का भाव आपके अंदर जितना गहरा होगा आप सत्य के उतने करीब होंगे फिर आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है।

एक पूर्ण चैतन्य व्यक्ति धर्म को स्वीकार सकता है, सत्य को समझ सकता है, शिव को समझ सकता है, शिव का आलौकिक सौन्दर्य देख सकता है। जिसकी आँखों पर परदा चढ़ा है अपने ही झूठे ज्ञान का, अहंकार का, अपनी झूठी धारणाओं का, ऐसे लोग धर्म के नाम पर हाथ में बुझे हुये दीये लेकर चलते हैं बस उन्हें लगता है कि मेरे हाथ में दीया है। एक तो आँखों पर परदा चढ़ा है और हाथ में बुझा हुआ दीया है, और वह समझ रहे हंै कि हमारे हाथ में जलते हुये दीये है ऐसे लोगों का भविष्य अंधकारमय होता है। वास्तव में लोगों के हाथ में जलते हुये दीये होते तो उनकी पूजा प्रार्थना जीवंत होती।

ज्ञान स्वयं के द्वार खोलता है, प्रेम सबके द्वार खोलता है, ज्ञान और प्रेम की अखण्ड साधना को जो साधक साधता है वह अखण्डता को उपलब्ध हो जाता है।

प्रेम मुक्त करता है, क्रोध, द्वेष, ईष्र्या आपको बाँधती है, नफरत आपको बाँधती है, जिससे आप नफरत करते हंै, आप गहराई में उससे बंध जाएॅगे, हर जन्म में वह आपको ही मिलेगा। आप जिससे वास्तव में प्रेम करते हैं उससे आप मुक्त हो जाएगें क्योंकि प्रेम मुक्त करता है। प्रेम से ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Guruvani

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