खुद के मालिक बनो
जो अंदर से अहिंसक हो गया उसे सहानुभूति होती है, इसे इमपैथी कहते हैं, सिमपैथी नहीं। दूसरों से हमारा जो फासला है। वह सिर्फ शरीर का ही फासला है। चेतना का कोई फासला नहीं होता है।
जब तक तू-तू, मैं-मैं, रहेगा तब तक हिंसा रहेगी, क्योंकि जब दो झूठे खड़े हो जाते हंै उन झूठों के बीच जो भी होगा वह उपद्रव ही होगा, वह कभी प्रीतिपूर्ण नहीं हो सकते। इनका उपद्रव कभी प्रेम बन जाता है तो कभी घृणा बन जाता है।
हिंसा मल्टी डायमेंशनल है और एक ही झरने से निकलती है, यह झरना है मैं-मैं, तू-तू का और जब तक आत्म अज्ञानता रहेगी यह झरना बहता रहेगा।
आत्मज्ञानी और आत्म अज्ञानी दो तरह के लोग हैं, दोनों में सिर्फ भाव का अंतर है,
मन मस्तिष्क को शुद्ध करने का सबसे अच्छा तरीका है गुरू मंत्र का नित्य जाप करना ú परम तत्त्वाय गुरूभ्यो नम: इस मंत्र को जपते जपते तुम मालिक बन जाओगे। स्वयं के मालिक, जो स्वयं का मालिक नहीं बन पाता वह दूसरों पर अपनी मालकियत जमाता है।