पारद योनि

नवम भाव में राहु, तृतीय में केतु तथा अन्य ग्रह इनके मध्य फँसे हों तो शंखनाद काल सर्प योग होता है । शंखनाद काल सर्प के निवारण हेतु जातक को पारद योनि स्थापित कर उसे स्वर्ण ग्रास कराते रहना चाहिए एवं छिन्नमस्ता साधना के अंतर्गत श्री रेणुका देवी का मंत्र जप करना चाहिए । ॐ श्री रेणुकायै नम: इस मंत्र को लाल हकीक माला से जपना चाहिए ।

परशुराम शंखनाद काल सर्प योग से ग्रसित थे इसलिए माता का का वियोग, पिता का वियोग, जीवन भर युद्ध, क्रूरता, रक्त-पात इत्यादि ही देखते रहे । अंत में जाकर अपनी माता की स्तुति की तब उन्हें दत्तात्रेय प्राप्त हुए और श्रीविद्या में पारंगत हुए । श्रीरेणुका देवी परशुराम की माता है । शंखनाद काल सर्प योग क निवारण उनकी साधना के अलावा किसी साधना से सम्भव नहीं है । इस काल सर्प योग से ग्रसित व्यक्ति राजा भी बना सकता है पर स्वयं नहीं बन पाता, उसके साथ काम करने वाले उसके अधीनस्थ उससे आगे बढ जाते हैं परन्तु वह वहीं का वहीं पड़ा रहता है । यह काल सर्प योग यथा स्थिति देता है अर्थात न भौतिक उन्नति, न मानसिक उन्नति, न आध्यात्मिक उन्नति । सब उसे सीढी बनाकर आगे बढकर जाते हैं और वह वहीं पड़ा रहता है अत: निदान तुरंत कर लेना चाहिए । इस काल सर्प से ग्रसित जातक को योनि रुद्राक्ष धारण करना चाहिए ।

Paarad Vigrah

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अमृतेश्वर