पारद शिवलिंग

सर्वप्रथम पारद शिवलिंगों का निर्माण साँचे से नहीं होता, विशुद्ध पारद शिवलिंग केवल हस्त निर्मित होते है अत: हस्त निर्मित विग्रहों में तौल-मौल नहीं चलता । मेरे यहाँ निर्मित प्रत्येक पारद शिवलिंग दूसरे पारद शिवलिंग से भिन्न होता है । हो सकता है कभी सर्प का फण मोटा हो जाए कभी पतला हो जाये, कभी योनि स्थान अर्थात जलहरी कुछ घट-बढ जाये, कभी उसमें जुड़ा शिव पिण्ड छोड़ा-बड़ा हो जाये क्योंकि हस्त निर्मित है, पर सही है । सम्पूर्ण पारद शिवलिंग वहीं है जिसमें जलहरी, शिवपिण्ड, त्रिनेत्र, अर्धचन्द्रमा, सर्फ फण इत्यादि भी पारद के बने हुए हों ।

दूसरी बात पारद शिवलिंग का अभिषेक मुख्यत: कच्चे पारे से होता है । पारद शिवलिंग नाजुक होता है उसे पाषाण शिवलिंग के समान घिसा, पटका या रगड़ा नहीं जा सकता अन्यथा वह खंडित हो जायेगा । मैंने पूर्व में लिखा पारद गुटिका में साधनात्मक शक्ति संरक्षित की जाती है । अत: पारद निर्मित शिवलिंग एवं पारद विग्रह का संस्पर्श सभी को नहीं करने देना चाहिए । अत्यधिक नकारात्मक जैविक ऊर्जा के कारण पारद विग्रह टूट जाते हैं । पारद पूजन परम सौभाग्य एवं भाग्योदय का प्रतीक है । एक वर्ष तक अगर पूर्ण श्रद्धा के साथ पारद विग्रह को खंडित होने से बचा लिया जाये एवं उसका उचित तरीके से पूजन किया जाए तो दुर्भाग्य सौभाग्य में परिवर्तित हो जाता है ।

पारद शिवलिंग के साथ पारद नंदी, तांत्रोक्त पारद श्रीयंत्र एवं पारद गणपति की स्थापना करने से शिव परिवार का निर्माण होता है एअं ब्रह्माण्ड की समस्त उपासनाएं इन पर सम्पन्न की जा सकती हैं । ज्योतिष का कार्य करने वाले, ब्रह्म विद्या का कार्य करने वाले, कुण्डली देखने वाले, हस्त रेखा विशेषज्ञ, अनुष्ठान एवं पूजन कराने वाले कुछ ही वर्षों में खोखले हो जाते हैं एवं नाना प्रकार के रोगों और मानसिक समस्या से ग्रशित हो जाते हैं ।

इसका सीधा सा कारण है आध्यात्मिक ऊर्जा का क्षय, सिद्धियों का क्षय, ब्रह्मज्ञान रुपी विद्या का क्षय यही हाल व्यापार घर-परिवार इत्यादी सभी जगह है अत: पारद शिवलिंग एवं पारद निर्मित शिव परिवार के पूजन से ब्रह्माण्डीय आध्यात्मिक ऊर्जा का क्षय रुक जाता है वह निरंतर सिंचित होती रहती है और कभी जातक को क्षय का सामना नहीं करना पड़ता है ।